XtGem Forum catalog

( welcome to Triveni yoga Foundation
त्रिवेणी योग में आपका स्वागत है ) Triveni Yoga 🙏

Triveni Yoga त्रिवेणी योग त्रिवेणी योग 2
(Home) (Yoga (योग ) Asanas(आसन) Pranayama(प्राणायाम) Meditation (ध्यान ) Yoga Poses (योग मुद्राएँ) Hatha Yoga ( हठ योग) Ashtanga (अष्टांग योग) Therapys ( चिकित्सा) Kundalini(कुण्डलिनी)PanchaKarma(पंचकर्म) Saṭkarma(षटकर्म )Illness Related (बीमारी संबंधी) Gallery BlogOur Teachers( हमारे अध्यापक) About Us ( हमारे बारे )

welcome to Triveni yoga
(त्रिवेणी योग में आपका स्वागत है)

Every Sunday Yoga Classes Free

You Can Translate Site according. your language

You can translate the content of this page by selecting a language in the select box.


स्थूल योग व्यायाम कियाएँ



बैठ कर की जानेवाली सूक्ष्म योग व्यायाम क्रियाएँ सिर से कमर तक के अवयवों को लाभ पहुँचाती है। इसी तरह निम्नलिखित स्थूल योग व्यायाम क्रियाएँ, पेट से पैरों की उँगलियों तक के अवयवों को स्फूर्ति प्रदान करती हैं। खड़े होकर ये क्रियाएँ करनी चाहिए।

विविध अवयवों से संबंधित प्रत्येक स्थूल योग व्यायाम क्रिया 5-10 बार करनी चाहिए | जिस अवयव के लिए क्रिया हो, वहीं पर ध्यान केंद्रित करें |

1. पेट से संबंधित क्रियाएँ

1. (अ) सीधे खड़े होकर हाथ के अंगूठे आगे और बाकी चार उँगलियाँ पीछे कर, दोनों हाथों से दोनों ओर कमर को पकड़े | सिर को सीधा रख कर भस्त्रिका प्राणायाम करें। अर्थात् हवा जल्दी-जल्दी बड़ी तेज़ी से बाहर छोड़ते हुए पेट को भीतर की ओर पिचकावें। हवा अंदर लेते हुए उदर को फुलावें। इस प्रकार आधे मिनट से एक मिनट तक कर थोड़ी देर आराम लें। बाद यह क्रिया फिर करें।

(आ) ऊपर की स्थिति में खड़े रह कर कमर से थोड़ा झुक कर सिर नीचे झुकाये बिना ऊपर की क्रिया करें।



(इ) ऊपर की स्थिति में खड़े रह कर, गर्दन से लेकर कमर तक के भाग को आगे की ओर पूरा झुका कर 7 अंक के रूप में रखें। ऊपर की क्रिया करें। सिर न झुकावें ।


2. (अ) सीधे खड़े रह कर पूरी साँस छोड़ दें। साँस को बाहर ही रोक कर, खाली पेट को आगे-पीछे हिलाते रहें। बाद में साँस लें |

(आ) सीधे खड़े रह कर पूरी साँस छोड़ दें। साँस को बाहर ही रोक कर सिर से कमर के ऊपरी भाग को थोड़ा आगे झुकावें। खाली पेट को शक्ति भर हिलाते रहें।

(इ) सीधे खड़े रह कर पूरी साँस छोड़े दें। साँस को बाहर ही रोक कर, सिर से कमर तक के भाग को 7 अंक के रूप में रख कर सीधे झुकें और पेट को हिलावे |

3. सीधे खड़े रह कर, सिर थोड़ा ऊपर उठावें। जीभ को गोल करें। होठों से जीभ बाहर निकालें। जीभ को मोड़ कर उसे नाल जैसा बनावें | उस जिह्वानाल से खूब हवा अंदर लेकर पेट को फुलावें । सिर झुका कर, ऑखें मूंद कर शक्ति भर उसी तरह रहें। बाद सिर उठा कर, नाक के द्वारा हवा धीरे-धीरे बाहर छोडें| यह क्रिया करते समय आरंभ में सिर में चक्कर आ सकता है। डरे नहीं | प्रारंभ दीवार या दरवाज़े का सहारा ले सकते हैं|

लाभ –
उपराक्त क्रियाओं से पेट, स्लीन, पेंक्रियास, मूत्रपिंड, गालब्लैडर तथा ऑतें आदि साफ़ होते हैं। व्यर्थ की चरबी घट जाती है| पाचन क्रिया ठीक होती है | पेट की व्याधियाँ कम होती हैं।

2. कमर से संबंधित क्रियाएँ

1 सीधे खड़े होकर दोनों हाथों से कमर पकड़े। दायीं तथा बायीं ओर शरीर को बारी-बारी से झुकावें। शरीर को झुकाते समय सांस छोड़ते रहें।


2. दोनों हाथों से दोनों ओर कमर पकड़े | कमर के ऊपरी भाग को दायीं तथा बायीं ओर पूरा घुमाते हुए पीछे देखें। शरीर को पीछे घुमाते समय साँस छोड़ते रहें। शरीर जब मध्य स्थिति में आवे तब सांस लेते रहें।

3. दोनों हाथों से दोनों ओर कमर पकड़ कर पेट, कूल्हे तथा कमर को गोलाकार में घुमावें | 8, 10 बार घुमाने के बाद रिवर्स भी करें।

लाभ –
इन क्रियाओं से कमर दर्द कम होता है| कमर के पास की व्यर्थ चरबी घटती है। अवयवों में चुस्ती आती है।

3. मलमूत्रद्वार संबंधी क्रियाएँ

1) मलद्वार

अ) दोनों पाँवों के अंगूठे और एड़ियाँ मिला कर सीधे खड़े हो जायें। पाँव, पिंडलियाँ, घुटने तथा कूल्हे कस कर मलद्वार को अंदर की ओर ऊपर सिकोड़े। कमर एवं कमर के ऊपरी हिस्से को ढीला रखें | सॉस सामान्य रहे | 30 से 60 सेकंड तक मलद्वार को सिकोड़ कर बाद उसे ढीला करें। इस क्रिया से मलद्वार का बाहरी हिस्सा सुदृढ़ बनता है|

आ) दोनों पाँवों के बीच तीन इंच की दूरी रख कर ऊपर की क्रिया करें। इस क्रिया से मलद्वार के भीतरी हिस्से की शक्ति बढ़ती है|

लाभ –
उपर्युक्त दो क्रियाओं से बवासीर, भगंदर, फिक्षुला तथा फिषर आदि मलद्वार संबंधी व्याधियाँ दूर होती हैं। कब्ज़ कम होता है। मल शुद्धि सरलता से हो जाती है।

2) मूत्रद्वार

दोनों पाँवों के बीच एक फुट की दूरी रहे। सीधे खड़े रहें। पाँव, पिंडली, कूल्हे कस कर मूत्रद्वार तथा मलद्वार दोनों को भीतर की ओर खींच कर सिकोड़ें। कमर के ऊपरी हिस्से को ढीला रखें। साँस सामान्य रहे | 30 से 60 सेकंड तक शक्ति के अनुसार इसी स्थिति में रहें। बाद ढीला करें।

सूचना –
18 वर्ष से छोटे बालक यह क्रिया न करें।

लाभ –
स्वप्न स्खलन एवं मूत्रद्रिय संबंधी व्याधियाँ दूर होंगी। यह क्रिया हर दिन करते रहें तो स्त्रियों के ऋतुस्राव संबंधी दोष दूर होंगे।

4. जाँघों, घुटनों तथा पिंडलियों से संबंधित क्रियाएँ

1. दोनों हाथों से कमर पकड़ कर, घुटनों को झुकाते और उठाते रहें। सांस सामान्य रहे | 8-10 बार करें |


2. दोनों हाथों से कमर पकड़ कर एड़ियाँ मिलाकर अंगूठे दूर-दूर रखें। घुटनों को नीचे झुकाते, उठाते रहें।


3. दोनों एड़ियाँ मिला कर, दोनों घुटने झुकावें। उन्हें इधर-उधर हिलावें।

4. पाँव के अंगूठे मिलावें। एड़ियाँ दूर रखें। दोनों घुटने झुका कर दोनों ओर इधर-उधर हिलाते रहें।

5. सीधे खड़े होकर दोनों हाथ सीधे आगे की ओर पसारें | पूरी साँस छोड़ते हुए एड़ियों पर बैठ जायें। पैर मिले रहें | फिर सांस लेते हुए उठ खड़े हो जायें।


6. दोनों हाथ बगल में पसारें। पैर दूरदूर रखें। ऊपर की क्रिया की भाँति करें।


7. पैर दूर-दूर रखें। बायें हाथ से दायाँ कान, दायें हाथ से बायाँ कान पकड़ कर ऊपर की क्रिया की भाँति करें।

8. हाथ बगल में सीधे पसारें। पैर दूर-दूर रखें। एड़ियों पर बैठ कर जाँघों को तेज़ी से ऊपर-नीचे करें।

9. दोनों हाथों से दोनों घुटने पकड़ कर झुकें । घुटनों तथा कमर के हिस्से को गोलाकार में घुमावें। इसी प्रकार रिवर्स भी करें।

10. ऊपर की क्रियाएँ करने के बाद घुटनों की मालिश करें। हथेलियों से घुटनों, जाँघो तथा पिंडलियों को थप-थपाएँ।

लाभ –
इन क्रियाओं से घुटनों का दर्द कम होगा। जांघों, घुटनों और पिंडलियों को बल मिलेगा। देखने में वे सुंदर लगेंगे। व्यर्थ की चरबी कम होंगी।

5. पांव, टखने, एड़ियों, तलुवे तथा पैर की उंगलियों से संबंधित क्रियाएं

1. सीधे खड़े हो जायें। हाथ के अंगूठे मुट्टियों में कसें । हाथ आगे की और पसारें | बायाँ हाथ बायीं कुहनी से और बायाँ पैर बायें घुटने से के मोड़े। बाद बायाँ पैर उठा कर दायें पैर पर – । खड़े रहे। दोनों हाथ और पैर जल्दी-जल्दी बारी-बारी से बदलें । पाँवों के साथ हाथ भी आगे-पीछे जल्दी-जल्दी पसारें | बायाँ घुटना उठा कर जब उसे मोड़ें तब बायीं कुहनी भी मोड़ें। इसी प्रकार जब दायाँ घुटना उठा कर मोड़ें तब दायीं कुहनी भी मोड़ें। दायाँ हाथ पसारते हुए साँस लें, बायाँ हाथ पसारते हुए साँस छोड़े। आरंभ में धीरे-धीरे करें। बाद वेग बढ़ावें। इसके बाद वेग को । कम करते हुए क्रिया स्थगित करें।



2. खड़े होकर कुहनियाँ झुका कर, उठे हुए दायें घुटने पर दायीं हथेली से, तथा बाद में उठे हुए बायें घुटने पर बायीं हथेली से थपथपावें। बारी-बारी से घुटने बदलते हुए धीरे-धीरे वेग बढ़ावें।


3. आगे की ओर सीधे पसारें | बाद दायें पाँव से बायीं हथेली, बायें पांव से दायीं हथेली, एक के बाद एक छूते रहें। धीरे-धीरे गति बढ़ावें ।


4. कमर को दोनों हाथों से पकड़ें। दायाँ घुटना बायीं ओर ऊपर उठावें। और झट बायें पाँव पर एकदम उछलें। इसी प्रकार दूसरी ओर भी करें|एक के बाद एक घुटना ऊपर उठाते हुए उछलते रहें | धीरे-धीरे वेग बढ़ावें ।


5. कमर को दोनों हाथों से पकडें| पाँवों के पंजे, फिर एड़ियाँ ऊपर उठाते, नीचे उतारते रहें। इसके बाद सारे शरीर को उछालें। फिर सारे शरीर को हिलाते, उछालते हुए दोनों पाँव दायीं ओर फिर बायीं ओर कमर के साथ हिलाते हुए कूदते रहें। बाद आगे पीछे कूदते रहे |


6. दोनों हाथ दोनों ओर ढीला रखें। दोनों एड़ियाँ मिला कर ऊपर उठावें । पाँवों के पंजों पर खड़े रह कर एड़ियों को इधर-उधर हिला कर घुमावें। शरीर भी घूमें। धीरे-धीरे वेग बढ़ावें। साँस सामान्य रहे |

7. दोनों हाथ दोनों ओर ऊपर उठाते हुए दोनों पैर दूरदूर फैलाते हुए उछलें । उछलते समय साँस लें। यथास्थिति में आते हुए साँस छोड़ें।



8. दोनों एड़ियों पर खड़े होकर, उन पर शरीर का भार डालें। थोड़ी दूर एड़ियों के सहारे चलें। बाद केवल पंजो पर चलें। थोड़ीदेर बाद पैरों को किनारिओं पर भी चलें |

9. सारा शरीर कस कर, छाती को थोड़ा आगे ले आवें | सीधे खड़े हो जायें। हाथ जाँघों पर लगावें। पूरे पाँव जमीन पर टिकावें। धीरे-धीरे पाँव आगे फिसलाते हुए सामने की ओर देखते हुए चलें। 20 कदम इस तरह आगे की ओर फिसलें। 20 कदम उसी तरह पीछे की ओर फिसलें | सांस सामान्य रहे | एड़ियों को ज़मीन पर से न उठावें।

लाभ –

पैरों की उँगलियाँ, पैरों के पंजे, तलुवे, एड़ियाँ तथा


ज्यादा देर तक खड़े रहनेवालों तथा ज्यादा चलनेवालों को इन क्रियाओं से आराम मिलेगा। आजकल कुछ लोग बिल्कुल नहीं चलते। ऐसे लोग ये क्रियाएँ कर, कुछ मिनटों में ही, कई किलो मीटर चलने से प्राप्त होनेवाले सभी लाभ उठा सकते हैं।

सभी उपर्युक्त क्रियाओं के बाद कमर के पास थोड़ा झुक कर हाथों सहित उँगलियाँ ढीली कर दें और उन्हें खूब हिलावें। इस प्रकार उँगलियाँ हिलाते हुए, घुटने थोड़ा झुका कर कुछ कदम चले। इससे खूब आराम मिलेगा| इसके बाद शवासन करें। इससे शरीर को आराम के साथ-साथ शक्ति भी मिलेगी।

उपर्युक्त स्थूल योग व्यायाम क्रियाएँ करने के लिए शारीरिक शक्ति कुछ हद तक आवश्यक है। यथाशक्ति ये क्रियाएँ करते रहें तो शक्ति चुस्ती में वृद्धि होगी।


Join Us On Social Media

 Last Date Modified

2024-03-29 12:51:21

Your IP Address

3.136.22.241

Your Your Country

Total Visitars

5

Powered by Triveni Yoga Foundation

Powered by Triveni Yoga Foundation